केंद्र सरकार द्वारा किसानों को लेकर पारित किये अध्यादेशों के खिलाफ राष्ट्रीय लोक दल पार्टी ने दिया ज्ञापन | फॉर्मर्स प्रोड्यूस ट्रेड एंड कॉमर्स (प्रमोशन एंड फैसिलिटेशन) ऑर्डिनेंस के तहत किसासों को डर है के मंडी बोर्ड (मंडी व्यवस्था) खत्म हो जाएगी कॉरपोरेट जगत और बिचौलिये फायदे में रहेंगे | वो औने-पौने दाम पर किसानों की फसल खरीदेंगे, क्योंकि किसानों के पास कोई विकल्प नहीं होगा | एसेंशियल एक्ट 1955 में बदलाव के तहत किसानों को लगता है के नई व्यवस्था में स्टॉक लिमिट को हटा लिया गया है | इससे जमाखोरी और कालाबाजारी बढ़ेगी | फॉर्मर्स अग्रीमेंट ऑन प्राइस एश्योरेंस एंड फार्म सर्विस ऑर्डिनेंस में बदलाव हुआ तो किसानों ने कहा के इसके जरिये कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग को आगे बढ़ाया जाएगा | कंपनियां खेती करेंगी और किसान मजदूर बनकर रह जाएगा | उसके सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं होगी |
राष्ट्रीय लोक दल ने किसानों विरोधी बताये केंद्र के अध्यादेश
राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन मध्य प्रदेश के प्रदेश अध्यक्ष राहुल राज का मानना है कि सरकार के इन अध्यादेशों से मंडी बोर्ड (मंडी व्यवस्था) खत्म हो जाएगी. उनका कहना है कि केंद्र सरकार के इन तीनों अध्यादेशों में बहुत से लूपहोल्स हैं जिससे किसानों को नुकसान होगा, जबकि कॉरपोरेट जगत और बिचौलिये फायदे में रहेंगे.
राहुल राज ने aajtak.in को बताया, फॉर्मर्स प्रोड्यूस ट्रेड एंड कॉमर्स (प्रमोशन एंड फैसिलिटेशन) ऑर्डिनेंस में वन नेशन, वन मार्केट की बात कही जा रही है. लेकिन इसका असली मकसद कृषि उपज विपणन समितियों (APMC) के एकाधिकार को खत्म करना और सभी को कृषि प्रोडक्ट खरीदने-बेचने की इजाजत देना है. राहुल राज का कहना है कि मंडी व्यवस्था खत्म होने से व्यापारियों की मनमानी और बढ़ जाएगी. वो औने-पौने दाम पर किसानों की फसल खरीदेंगे, क्योंकि किसानों के पास कोई विकल्प नहीं होगा.
राहुल राज के मुताबिक, इस कानून की सबसे बड़ी खामी है कि इसमें व्यापारी या कंपनी और किसान के बीच विवाद होने पर पहले एसडीएम और बाद में जिलाधिकारी मामले को सुलझाएंगे. इसमें कोर्ट जाने की व्यवस्था नहीं है, अधिकारी सरकारी नुमाइंदा होता है, उससे कोई किसान न्याय की कितनी उम्मीद कर सकता है? सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करने की कोई गारंटी नहीं दे रही है. हमें वन नेशन, वन रेट चाहिए.
राहुल राज मध्य प्रदेश में मूंग की मौजूदा कीमत को एमएसपी और मंडी व्यवस्था खत्म होने पर आने वाली व्यापारियों की मनमानी का सबूत बताते हैं. मूंग का न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी 7196 रुपये प्रति क्विंटल घोषित है. लेकिन सरकारी खरीद शुरू न होने से व्यापारी इसके मनमाने दाम लगा रहे हैं. किसानों को मूंग के लिए अधिकतम 5200 रुपये प्रति क्विंटल का भाव मिल रहा है. मूंग को हर हाल में बेचना किसानों की मजबूरी है, क्योंकि उनके पास बारिश के इस मौसम में उसे सुरक्षित रखने की कोई जगह नहीं है. राहुल राज इन अध्यादेशों को लाने के समय पर भी सवाल उठाते हैं. उनका कहना है कि कोरोना संकट में ऐसे कानूनों को लाना, किसानों की आवाज को दरकिनार करना है.
दूसरा, किसानों को सरकार की 'एक राष्ट्र-एक बाजार' योजना का रास नहीं आ रही है. हाल ही में केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री कैलाश चौधरी ने ट्वीट किया, "किसानों को उनकी फसल का उचित दाम दिलाने के लिए "एक राष्ट्र-एक बाजार" योजना लागू की गई है. इसके अंतर्गत किसान अपनी फसल किसी भी राज्य में, कहीं पर भी बेच सकते हैं."
कैलाश चौधरी के इस ट्वीट पर कई ट्विटर यूजर्स ने पूछा कि जब सभी जगह मूंग के दाम उसकी लागत से नीचे है तो ऐसे में कोई किसान देश में कहां पर अपनी फसल बेचने ले जाए?
2. एसेंशियल एक्ट 1955 में बदलाव
केंद्रीय कृषि सचिव संजय अग्रवाल कहते हैं कि यह अनाजों, दलहनों, खाद्य तेल, आलू और प्याज को अनिवार्य वस्तुओं की सूची से हटाकर खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र को मुक्त कर देगा. यह निजी उद्यमियों को भरोसा और उन्हें इस क्षेत्र में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करता है. इन सभी अध्यादेशों के जरिये सरकार 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने का मकसद हासिल कर सकेगी.
वहीं किसान नेता राहुल राज ने एसेंशियल एक्ट 1955 में बदलाव करने से कालाबाजारी बढ़ने की आशंका जताई. उन्होंने कहा कि एसेंशियल एक्ट 1955 को कृषि उपज को जमा करने की अधिकतम सीमा तय करने और कालाबाजारी को रोकने के लिए बनाया गया था. लेकिन नई व्यवस्था में स्टॉक लिमिट को हटा लिया गया है. इससे जमाखोरी और कालाबाजारी बढ़ेगी. उन्होंने बताया कि मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश चंद्र सेठी 1972 में मंडी एक्ट लेकर आए थे. मंडी में औने पौने दामों पर फसल की कीमत न तय हो, इसकी व्यवस्था इसमें थी. लेकिन धीरे-धीरे सब पीछे छूटता चला गया.
3. फॉर्मर्स अग्रीमेंट ऑन प्राइस एश्योरेंस एंड फार्म सर्विस ऑर्डिनेंस
संजय अग्रवाल कहते हैं कि (व्यावसायिक) खेती के समझौते वक्त की जरूरत हैं. विशेषकर छोटे और सीमांत किसानों के लिए, जो ऊंचे मूल्य की फसलें उगाना चाहते हैं, मगर पैदावार का जोखिम उठाते और घाटा सहते हैं. इस अध्यादेश से किसान अपना यह जोखिम कॉरपोरेट खरीदारों को सौंपकर फायदा कमा सकेंगे.
मगर, राहुल राज इससे उलट बात कहते हैं. उन्होंने कहा कि इसके जरिये कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग को आगे बढ़ाया जाएगा. कंपनियां खेती करेंगी और किसान मजदूर बनकर रह जाएगा. उसके सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं होगी. हाल में सरकार ने कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की गाइडलाइन जारी की है. इसमें कॉन्ट्रैक्ट की भाषा से लेकर कीमत तय करने का फॉर्मूला तक दिया गया है. लेकिन कहीं भी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य का कोई जिक्र नहीं है, जिस पर किसान नेता सवाल उठा रहे हैं.
किसान नेता राहुल राज ने कहा कि इन अध्यादेशों पर अखिल भारतीय स्तर पर किसानों से मशविरा किया जाना चाहिए था और जानना चाहिए था कि असल में उनकी दिक्कतें क्या हैं?
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