पढ़ने की उम्र में सामान बेंच रहे है कुम्हारों के बच्चे




त्योहारों का सीजन शुरू हो गया है पिछले दिनों हुई करवा चौथ और उसके बाद अब दीपावली में भी सबको कुम्हारों के बने सामानों की जरूरत पड़ने वाली है ऐसे में कुम्हारों के पास भी काम आ गया है, देश में जब से प्लास्टिक का चलन बढ़ा है तब से कुम्हारों के काम लगभग ठप हो चुके हैं जिससे उनकी आर्थिक हालत दयनीय हो गई है यह कहना है बरेली के कुम्हारों का।
 बानखाना में रहने वाले कुछ कुम्हारों से  जब हमने बात की तो उन्होंने बताया कि जब से प्लास्टिक चली है तब से मिट्टी के बर्तन और हमारा रोजगार लगभग छूट सा गया है।
मिट्टी के बर्तनों का काम करने वालों के बच्चों को भी पढ़ने की उम्र में ही उनके साथ काम करना पड़ता है। परिजन कहते हैं, कि यह बच्चे अपना और अपने परिवार का पेट भरते हैं और बच्चों का भविष्य क्या होगा ये खुद परिजनों को भी नहीं मालूम।
त्योहारों के समय में उनकी सामानों की बिक्री होती है और उससे उनके परिवार की रोजी-रोटी चलती है।


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