ताजियादारी एक शुद्ध भारतीय परंपरा है





मुहर्रम के महीने का आग़ाज़ 11 सितंबर से हो चुका है। इस साल मुहर्रम का महीना 9 अक्टूबर तक चलेगा । इस्लाम के अनुसार मुहर्रम साल का पहला महीना होता है और ये महीना बेहद ख़ास होता होता है यहाँ हम आपको बता दें कि इस्लामी कैलेंडर की तारीखें चंद्रमा पर आधारित होती हैं।  इस्लाम में चार पवित्र महीने माने गए हैं और उनमें मुहर्रम भी शामिल है।

मोहर्रम इमाम हुसैन और उनके साथियों के बलिदानों को याद करके उसका शोक मानाने और आंसू बहाने का समय होता है। 
मुहर्रम माह के दस दिनों के दौरान शिया समुदाय के लोग काले कपड़े पहनते हैं। 

इस दौरान लोग हुसैन और उनके परिवार की शहादत के मंज़र को महसूस करने की कोशिश करते हैं। 
इसके लिए लोग सड़कों पर जुलूस निकालते हैं और मातम मनाते हैं। 

मुहर्रम की नौ और दस तारीख को मुसलमान रोजे रखते हैं और मस्जिदों-घरों में इबादत की जाती है।  


ताजियादारी एक शुद्ध भारतीय परंपरा है,इसकी शुरुआत बरसों पहले तैमूर लंग बादशाह ने की थी, जिसका ताल्लुक शीआ संप्रदाय से था। 
तैमूर लंग बादशाह के समय से ही भारत में शीआ-सुन्नी और कुछ क्षेत्रों में हिन्दू भी ताजियों की परंपरा को मनाते आ रहे हैं


तैमूर लंग शीआ संप्रदाय से था और मुहर्रम माह में हर साल इराक जरूर जाता था, लेकिन बीमारी के कारण एक साल नहीं जा पाया। वह हृदय रोगी था, इसलिए हकीमों, वैद्यों ने उसे सफर के लिए मना किया था। 
बादशाह सलामत को खुश करने के लिए दरबारियों ने ऐसा करना चाहा, जिससे तैमूर खुश हो जाए। 
उस जमाने के कलाकारों को इकट्ठा कर उन्हें इराक के कर्बला में बने इमाम हुसैन के कब्र की प्रतिकृति बनाने का आदेश.दिया। 
कुछ कलाकारों ने बांस की किमचियों की मदद से ‘कब्र’ या इमाम हुसैन की यादगार का ढांचा तैयार किया। इसे तरह-तरह के फूलों से सजाया गया। इसी को ताजिया नाम दिया गया।

तब से लेकर आज तक इस अनूठी परंपरा को भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और बर्मा (म्यांमार) में मनाया जा. जबकि खुद तैमूर लंग के देश उज्बेकिस्तान या कजाकिस्तान में या शीआ बहुल देश ईरान में ताजियों की परंपरा का कोई उल्लेख नहीं मिलता है।तुगलक-तैमूर वंश के बाद मुगलों ने भी इस परंपरा को जारी रखा।

ताजिया सजाने की परंपरा का उल्लेख इतिहास में मिलता है लेकिन वहीँ कुछ विद्वान ताजियों को उठा कर ढोल नगाड़े बजाने और डांस करने पर कड़ी आपत्ति उठाते हैं | क्योंकि इमाम हुसैन की शहादत की याद में नाचना ढोल बजाना और ताजिया घूमना जायज़ नहीं हो सकता|
 बादशाह तैमूर लंग के लिए बनाया गया था पहला ताजिया 
तब से लेकर आज तक इस अनूठी परंपरा को मनाया जाता है 

बांस की किमचियों की मदद से कर्बला जैसा इमाम हुसैन की यादगार का खूबसूरत ढांचा तैयार किया













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