ताजुशरिया मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा खान कादरी अज़हरी उर्फ अज़हरी मियां नहीं रहे. शुक्रवार की शाम उनका इंतकाल हो गया. 2 फरवरी, 1943 में जन्मे मुफ़्ती अज़हरी रज़ा 75 वर्ष के थे. वह देश के सुन्नी बरेलवी मुलसमानों के सबसे बड़े मज़हबी रहनुमा माने जाते थे. उन्हें अमान (जॉर्डन) के रॉयल इस्लामिक स्ट्रेटेजिक स्टडीज सेंटर द्वारा 2014-15 में दुनिया के 500 सबसे प्रभावशाली मुस्लिमों में २२ वें स्थान पर शामिल किया गया था. उन्हें ‘क़ाज़ी-उल-कुज़त-फिल-हिन्द’ कहा जाता था. आला हज़रत खानदान में पैदा हुए अज़हरी मियां की पूरी ज़िंदगी मसलके आला हज़रत को आगे बढ़ाने गुजरी उनकी शुरूआती तालीम मदरसा दारुल उलूम मंजरे इस्लाम में हुई , उन्होंने यहाँ पर उर्दू के आलावा फ़ारसी की भी तालीम हासिल की उसके बाद इस्लामियां इन्टर कॉलेज में दाखिला लेकर उन्होंने हिंदी और अंग्रेजी की भी तालीम हासिल की.... कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद वो १९६३ में मजहबी तालीम हासिल करने के लिए मिश्र चले गये .. कहा जाता है की वहां से वापस आने के बाद ही उनके नाम के आगे अज़हरी लग गया था। अज़हरी मियां जो होने के साथ-साथ वक्ता और लेखक भी थे जो तस्वीरन का हुक्म टीवी और वीडियो का ऑपरेशन ,दिफ़ा -ए-कानज़ुल इमान, आसार-ए-कियामत, अल हाद अल-काफ जैसी कयी क़िताबें उन्होंने अरबी, अंग्रेजी भाषा में लिखी है
ताजुशरिया मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा खान कादरी अज़हरी उर्फ अज़हरी मियां नहीं रहे. शुक्रवार की शाम उनका इंतकाल हो गया. 2 फरवरी, 1943 में जन्मे मुफ़्ती अज़हरी रज़ा 75 वर्ष के थे. वह देश के सुन्नी बरेलवी मुलसमानों के सबसे बड़े मज़हबी रहनुमा माने जाते थे. उन्हें अमान (जॉर्डन) के रॉयल इस्लामिक स्ट्रेटेजिक स्टडीज सेंटर द्वारा 2014-15 में दुनिया के 500 सबसे प्रभावशाली मुस्लिमों में २२ वें स्थान पर शामिल किया गया था. उन्हें ‘क़ाज़ी-उल-कुज़त-फिल-हिन्द’ कहा जाता था. आला हज़रत खानदान में पैदा हुए अज़हरी मियां की पूरी ज़िंदगी मसलके आला हज़रत को आगे बढ़ाने गुजरी उनकी शुरूआती तालीम मदरसा दारुल उलूम मंजरे इस्लाम में हुई , उन्होंने यहाँ पर उर्दू के आलावा फ़ारसी की भी तालीम हासिल की उसके बाद इस्लामियां इन्टर कॉलेज में दाखिला लेकर उन्होंने हिंदी और अंग्रेजी की भी तालीम हासिल की.... कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद वो १९६३ में मजहबी तालीम हासिल करने के लिए मिश्र चले गये .. कहा जाता है की वहां से वापस आने के बाद ही उनके नाम के आगे अज़हरी लग गया था। अज़हरी मियां जो होने के साथ-साथ वक्ता और लेखक भी थे जो तस्वीरन का हुक्म टीवी और वीडियो का ऑपरेशन ,दिफ़ा -ए-कानज़ुल इमान, आसार-ए-कियामत, अल हाद अल-काफ जैसी कयी क़िताबें उन्होंने अरबी, अंग्रेजी भाषा में लिखी है
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